जुस्तुजू आरजू वो तु...
आते ये पैगाम किस शख्स का हाल जानते हैं!
बदली शहर की सूरत में किसको पहचानते हैं!
अगर खुद के लिए ही जिने की अपनी नियत है!
तो दिल के नालों से हम किसको पुकारते हैं!
कोई दरबदर है तो देने को सहारा किसी को पहचान की नजर रखे वो जो सहारा मांगते हैं!
जिंदगी को जिंदगी की तरह ही जीना बेहतर इश्क वया है बेखुदी लोग रात भर जागते हैं!
कर दे अपनी तमन्ना को जाहिर रख न दिल में तमन्ना का होकर मिटना ही जिंदगी मानते हैं!
मेरी जो वर्षों से रही जुस्तुजू आरजू वो तु तभी तो खुद से ज्यादा हम तुझे जानते हैं!
वो कदमों की आहट से ही हाल दिल जान लेंगे जो रुख पे पड़ी नकाब से भी तुझे पहचानते हैं!