जाम पे जाम 



तुझे भुलाने की चाह में अंजाम न जाना जाम पे जाम का, कभी उठाया जाम मयकसी के लिये कभी यादों के नाम का हर हार पे जीत का गुमा है जैसे कोई मुकम्मल दुआ है ,
गम में डूबी हो जब जिंदगी तो सुकून है जाम सुबह शाम का करके नाम रफाक्त जिंदगी की उसकी दुनिया में चला आया जिसके लिए ये पागलपन मेरा नहीं रहा अब किसी काम का ख्वाईसों को अब जताऊं क्या जब जीने की ही तमन्ना न रही जीना सजा मरना गुनहा
क्या अजीब अंजाम है
                           इस मुकाम का हमसे कहना जाइज नही तो गैरो से ही बता दे अफसाने को पता तो चले इरादा क्या किए है इन नजरो के पैयाम का आए  याद वो जब भी गुजरे लम्हें तड़पा के रख दिया हमें और बिन पिय देखना, मुश्किल था बड़ा तड़पना उम्र तमाम का वफा कर या जफ़ा कर तेरा हर किया मेरे लिए इनायत है, देखना तेरा ही है मेरा नजर को देखना क्या अंजाम का!